परिचय:
वन उत्पादकता संस्थान, रांची, पूर्वी भारत के वानिकी अनुसंधान की जरूरतों को पूरा करने वाला एक प्रमुख वानिकी अनुसंधान संस्थान है। संस्थान के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत, देश के अन्य भागों के अलावा प्रमुख रूप से उत्तर बंगाल में सुरम्य पूर्वी हिमालय के क्षेत्र, बिहार और पश्चिम बंगाल में इंडो-गैंगेटिक मैदानों के उपजाऊ जलोढ़ विस्तार, विश्व प्रसिद्ध सुंदरबन के डेल्टा और तटीय मैंग्रोव, बिहार के उत्तर पश्चिम कोने में तराई साल वन क्षेत्र और कैमूर और छोटानागपुर पठार के उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन आते हैं, जो खनिज संसाधनों में अत्यंत समृद्ध हैं|
शासनादेश:
1. वानिकी अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार द्वारा वन संसाधनों का वैज्ञानिक और स्थायी प्रबंधन।
2. केंद्र और राज्य सरकारों को वानिकी एवम् पर्यावरण से संबंधित राष्ट्रीय और क्षेत्रीय महत्व और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के मामलों में वैज्ञानिक सलाह एवम् जानकारी उपलब्ध कराना।
3. राज्यों, वन आश्रित समुदायों, वन आधारित उद्योगों, वृक्ष और लघु वनोपज उत्पादकों और अन्य हितधारकों को उनके वानिकी आधारित कार्यक्रमों में संरक्षण और वन संसाधनों के सतत उपयोग से संबंधित तकनीकी सहायता और सामग्री प्रदान करना।
4. वन संवर्धन और वन प्रबंधन क्षेत्र में अनुसंधान क़े द्वारा, नर्सरी और वृक्षारोपण तकनीक सहित वानिकी पौध प्रजातियों क़े प्राकृतिक और कृत्रिम पुनर्जनन तकनीक का विकास करना।
5. महत्वपूर्ण अकाश्ठ वन उत्पादों एवम् कम ज्ञात वृक्ष प्रजातियों के लिए उपयुक्त खेती, फसल और कटाई की तकनीक विकसित करना।
6. वन उत्पादकता, पर्यावरण की बहाली और खनन क्षेत्रों और अन्य बंजर स्थलों के पुनर्वास से संबंधित कार्य।
7. आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण वन प्रजातियों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए वृक्ष के आनुवंशिक सुधार पर अनुसंधान।
8. वनों के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान और जानकारियों का प्रबंधन।
9. नवीन विस्तार रणनीतियों और कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से उपयोगकर्ताओं तक वानिकी तकनीकों का प्रचार एवम् प्रसार।
10. परिषद के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अन्य आवश्यक विषयों पर कार्य करना।
मुख्य अनुसंधान क्षेत्र :
1. खनन किए गए ओवरबर्डन और बंजर भूमि का पारिस्थितिक पुनर्वास।
2. लाख और तसर सहित अन्य अकाषठ् वन उत्पाद और वन मूल की नकदी फसलो पर अनुसंधान।
3. पूर्वी भारत में विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों और फसल के अनुरूप उपयुक्त कृषि-वानिकी मॉडल का विकास।
4. समुदाय आधारित प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और स्वदेशी पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण।
5. वन आनुवंशिक संसाधन प्रबंधन और वृक्ष-सुधार कार्यक्रम।
6. प्रमुख वानिकी प्रजातियों की वन संवर्धन तकनीकों का विकास।
भौगोलिक क्षेत्राधिकार:
1. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल।
2. 42,000 Km2 से अधिक वन क्षेत्र।
3. छह कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्र।
4. छह मुख्य वन प्रकार।
मुख्य उपलब्धियां: (विस्तार से देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें)
1 - Research शोध
The Institute has made significant progress in the sphere of research and extension. Macro as well as micro-propagation procedures have been developed for important forestry, medicinal plant and bamboo species of the region. These include Anthocephalus chinensis, Bambusa nutans, Ceiba pentendra Dendrocalamus asper, Embelia ribes, Pongamia pinnata, Raouwolfia serpentina, Schleichera oleosa. The Institute has successfully introduced poplar cultivation in the state of Bihar by planting out more than 76 lakhs of entire transplants in the farmer’s field. Due to its massive awareness campaign, this widely appreciated project could reach 25 rural administrative blocks, 1,300 villages and 34,000 households in Vaishali and adjoining districts promoting livelihood opportunities.
The UNDP sponsored CBNRM project developed the forestry-based livelihood model in Jharkhand involving community participation in different natural and social scenarios with stupendous effort resulting in marked improvement of socio-economical condition of the rural people and conservation of natural resources. Under the project the institute also carried out the pioneering work on preparation of Peoples’ Biodiversity Registers.
The institute worked out volume tables for Phasi (Anogeissus acuminata) tree, which is religiously associated with peoples of Odisha. The phasi wood is used for making chariot wheels of Lord Jagganatha during famous Rathyatra festival of Puri. As per volume table, a tree of >45 years was only recommended for preparation chariot wheels, conserving the young trees of the species for future use. A scientific study was undertaken for the first time to precisely estimate production potential of Tendu (Diospyros melanoxylon) leaf for formulation of socio-economic strategy for those forest fringe dwellers, who obtain their livelihood through the activity.
The Institute also excelled in promotion of scientific cultivation of lac in the region. Extension activities pertaining to lac cultivation on Flamengia spp., an alternative lac host with manageable short height and gestation period, revived the interest of farmers to vigorously undertake lac cultivation in Jharkhand. Consequently, the economic conditions of the farmers improved, for they earned an income of Rs. 1,50,000 - 2,00,00 per year on their fallow land. In fact, Khunti model of lac cultivation received a wide acclaim in the locality.
2 - Extension विस्तार
The institute has organized 34 nos. (thirty four) trainings on various topics for the benefits of farmers, artisans, tribals and SFD officials in the jurisdiction area of the institute i.e. Bihar, West Bengal and Jharkhand in the last five years (2012 – 13 to 2016 – 17) on the topics (i) Lac cultivation - 20 nos.; (ii) Bamboo propagation cultivation and management for sustainable livelihood – 8 nos.; (iii) NTFP and Medicinal plants for sustainable livelihood – 2 nos. and 4 nos. training each in (a) Eco-restoration of wastes land, (b) Diagnosis of soil for production, (c) GIS Application and its implication in Forestry & (d) Agroforestry and Modern Nursery Techniques.
3 - Education शिक्षा
1- A total no. of 36 scholars were enrolled for the Ph. D. degree out of which 13 nos. has been awarded Ph. D degree. 254 students in 18 batches of various disciplines were benefited by the ‘Dissertation Training Programme’ on various topics during the last five years. The institute has initiated for the publication of the first Hindi journal “Shodh Taru” [ISSN: 2394 - 8744] in forestry discipline and second in all science disciplines in the country. The Institute is regularly publishing the "Annual Lac Bulletin" since its inception.
वर्तमान में जारी प्रोजेक्ट
पूर्ण प्रोजेक्ट
अधिक जानकारी के लिए देखें: http://ifp.icfre.gov.in/