1. राष्ट्रीय वनीकरण एवं पर्यावरण विकास बोर्ड, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार की वानिकी क्षेत्र की योजनाओं का अनुश्रवण और मूल्यांकन
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् ने राष्ट्रीय वनीकरण एवं पर्यावरण विकास बोर्ड के सहयोग से देश के 27 राज्यों में विस्तृत व्यापक मूल्यांकन अध्ययन किया। इस अध्ययन के अंतर्गत 182 एफ.डी.ए. और 600 से अधिक जे.एफ.एम.सी. का दौरा किया और पर्यावरण और वन मंत्रालय के लिए नीति प्रक्रिया को सूचित करने हेतु बहुमूल्य अंतर्दृष्टि विकसित की गई।
2. राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की वानिकी क्षेत्र की योजनाओं का अनुश्रवण एवं मूल्यांकनः
उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, अंडमान और निकोबार, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गोवा, असम, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर और अरूणाचल प्रदेश जैसे राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशो में 32 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में से जहां एन.एम.पी.बी.ए. द्वारा योजनओं को स्वीकृति प्रदान की गई थी, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् द्वारा उपरोक्त राज्यों में राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा स्वीकृत योजनाओं का अनुश्रवण एवं इस अध्ययन के दौरान हितधारकों के एक विविध समूह के साथ औपचारिक और अनौपचारिक संबंधों की बाहुल्यता का आकलन किया गया ताकि राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड द्वारा स्वीकृत योजनाओं के कार्यक्रम की स्थिति, प्रदर्शन और प्रभाव पर जानकारी-प्रवाह प्रदान कर सके। प्रचार और वाणिज्यिक योजनाओं में महत्वपूर्ण समस्याएं, संगठनात्मक संरचना और प्रभावी कार्यप्रणाली और नीतिगत मुद्दों के लिंक की पहचान की गई और सर्वाेत्तम विकल्पों की अनुशंसा की गई।
3. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार कर्नाटक के बेल्लारी जिले का वृहत् स्तर-ई.आई.ए. अध्ययन
सर्वोच्च न्यायालय ने अपील याचिका संख्या 7366-7367/2010 पर विशेष सुनवाई करते हुए, कर्नाटक के बेल्लारी जिले में व्यापक और अवैज्ञानिक लौह अयस्क खनन से पर्यावरणीय निम्नीकरण का हवाला देते हुए, 5 अगस्त 2011 को भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् को भारतीय वन सर्वेक्षण तथा वन्य जीव संस्थान के सहयोग के साथ बेल्लारी जिले का एक वृहत स्तर ई आई ए अध्ययन, तथा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के परामर्श से आवश्यक अन्य प्रक्षेत्र विशेषज्ञों को सम्मिलित करने का आदेश दिया। अध्ययन तदनुसार पूर्ण हुआ और सर्वोच्च न्यायालय को प्रतिवेदन जमा किया गया।
4. कर्नाटक सरकार के लिए कर्नाटक की ए, बी, और सी श्रेणी की 166 खदानों के लिए पुनप्र्राप्ति और पुनरूद्धार योजना तैयार करना
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् द्वारा प्रस्तुत वृहत पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ई आई ए) प्रतिवेदन के आधार पर कर्नाटक के बेल्लारी, चित्रदुर्ग और तुम्कर जिलों में अवैज्ञानिक और अनियंत्रित खनन द्वारा गम्भीर क्षति के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार को खनन प्रभावित जिलों के लिए एक पुनप्र्राप्ति और पुनरूद्धार योजना जमा करने हेतु निदेश दिए। कर्नाटक सरकार ने राष्ट्रीय पर्यावरण मानकों तथा पर्यावरण मानकों तथा पर्यावरण के सतत प्रबंधन हेतु अपनी प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए अपने पत्र संख्या डी.एम.जी./एम.एल.एस./आर एंड आर आई 2011-12 दिनांक 27.12.2011 के माध्यम से भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् को पुनप्र्राप्ति और पुनरूद्धार योजना तैयार करने के कार्य को प्रदान किया। आज तक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् ने 119 पुनप्र्राप्ति और पुनरूद्धार योजनाएं जमा की हैं, जिनमें से 115 को माननीय सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा (सी.ई.सी. के माध्यम से) अनुमोदित किया गया है।
5. वार्षिक कैप (अयस्क उत्पादन हेतु) सुझाव हेतु सरांदा क्षेत्र जिला पश्चिम सिंहभूम, झारखंड का क्षमता निर्धारण अध्ययन
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्, देहरादून ने वन्यजीव संस्थान, देहरादून, केन्द्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान, धनबाद, तथा जेवियर इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल सर्विस, रांची के सहयोग से ‘‘झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के सरांदा वन प्रभाग में लौह अयस्क उत्पादन की वार्षिक क्षमता सुझाव देने हेतु क्षमता अध्ययन’’ संचालित किया तथा झारखंड में जैव-विविधता समृद्ध सरांदा वन क्षेत्र में संवहनीय खनन की सिफारिशों के साथ 14 महीनों के भीतर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
6. रवींद्र रंगशाला/टैगोर मेमोरियल (आर.आर.टी.एम.), ऊपरी रिज क्षेत्र, नई दिल्ली के संबंध में पर्यावरण प्रभाव आकलन
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के निर्देशानुसार, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित, रवींद्र रंगशाला/टैगोर मेमोरियल का पर्यावरण प्रभाव आकलन अध्ययन किया और 6 सप्ताह के भीतर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
7. नदी घाटियों में जल विद्युत परियोजनाओं के संचयी पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन
हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी घाटी तथा उत्तराखंड में यमुना और टांेस नदी घाटियों में जल विद्युत परियोजनाओं के संचयी पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (सी.ई.आई.ए.) तीन राष्ट्रीय विषय विशेषज्ञ संस्थानों जैसे अल्टरनेट हाइड्रो एनर्जी सेंटर (ए.एच.ई.सी.), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) रूड़की, शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय (डी.सी.एफ.आर), भीमताल तथा सलीम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केंद्र, कोयम्बटूर ने समझौते की शर्ताे (टी.ओ.आर) के अनुसार किया।
यमुना, टोंस तथा सतलुज नदी घाटियों में अध्ययन का अंतिम मसौदा प्रतिवेदन क्रमशः उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड, उत्तराखण्ड सरकार तथा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार को सौंप दिया गया है। पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा सतलुज घाटी में 10 मेगा वाट से कम क्षमता के जल विद्युत परियोजनाओं पर अतिरिक्त अध्ययन, प्रगति पर है।
8. कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा वित्त पोषित सहायक कोयला कंपनियों द्वारा संचालित कोयला खदानों का पर्यावरणीय लेखा परीक्षण
कोल इंडिया लिमिटेड (सी.आई.एल.), कोलकाता, कोयला मंत्रालय, भारत सरकार के तहत सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम की एक ‘महारत्न’, तथा विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कम्पनी है, जो भारत के आठ राज्यों असम, छत्तीसगढ, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल में फैले 81 खनन क्षेत्रों की 429 खदानों (237 भूमिगत, 166 ओपनकास्ट और 26 मिश्रित खदानों) के माध्यम से संचालित होती है। यह 17 कोयला धावनियों (12 कोकिंग कोल और 5 गैर-कोकिंग कोल) का भी संचालन करती है। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्, देहरादून ने पर्यावरणीय अनापत्ति (ई.सी.) परिस्थितियों के अनुपालन के अनुरूप 20 ओपन कास्ट खदानों के स्वीकृत खदान बंदी योजना के अनुसार खनन क्षेत्रों की पुर्नवास और पुनरूद्धार स्थिति पर कार्य ले लिया है। अभी तक 12 खदानों (05 सहायक कंम्पनीयों) हेतु पर्यावरण लेखा परीक्षा प्रतिवेदन, कोल इंडिया लिमिटेड मुख्यालय को प्रेषित की जा चुकी हैं। पर्यावरण लेखा परीक्षा सम्पूर्ण भारत में कार्यक्षेत्र विशेषज्ञों के सहयोग से आयोजित की गई और भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् के संस्थानों जैसे वन उत्पादकता संस्थान रांची, वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान कोयम्बटूर, वन जैव विविधता संस्थान, हैदराबाद तथा उष्ण कटिंबंधीय वन अनुसंधान संस्थान से भी विशेषज्ञों को सम्मिलित किया गया।
9. सरकारी विशेषज्ञ संस्थानों के साथ संपर्क स्थापना
इसके अतिरिक्त, इस प्रभाग ने सरकारी विशेषज्ञ संस्थानों जैसे ए.एच.ई.सी., आई.आई.टी. रूडकी, डी.सी.एफ.आर. भीमताल, एस.ए.सी.ओ.एन. कोयम्बटूर, डब्लू.आई.आई. देहरादून, एन.ई.ई.आर.आई. नागपुर, एन.आर.एस.सी. हैदराबाद, सी.आई.एम.एफ.आर., जेवियर इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल सांइसेज, रांची के साथ परामर्श सेवाओं के निष्पादन हेतु अल्पकालीन संघटन विकसित किया है। बहुआयामी क्षेत्र विशेषज्ञों के एक संघ को चिन्हित किया गया है, जिनकी आवश्यकता अनुसार मामलो के आधार पर सेवाओं का उपयोग किया जाता है। कर्नाटक में 100 से अधिक लौह अयस्क खनन परियोजनओं और कोल इंडिया लिमिटेड की अनेकों कोयला खदानों के लिए पर्यावरण के हरित पहलू के संबंध में पर्यावरण नीति विश्लेषण किया गया है और उचित सुधार उपायों का सुझाव दिया गया है।
10. क्षमता निर्माण
इस प्रभाग ने पर्यावरण प्रबंधन के क्षेत्र में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् और इसके संस्थानों के 40 से अधिक अधिकारियों की क्षमता निर्माण की व्यवस्था भी की है। हाल ही में, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् के 04 संस्थानों वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून; वर्षा वन अनुसंधान संस्थान, जोरहाट; काष्ठ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, बंगलूरू और शुष्क वन अनुसंधान संस्थान, जोधपुर में क्षेत्रीय पर्यावरणीय प्रबंधन इकाइयां स्थापित की गई हैं। इन क्षेत्रीय पर्यावरण प्रबंधन इकाइयों के प्रसार का कार्य प्रगति पर है।
11. पर्यावरण प्रबंधन प्रभाग के नवीन उपक्रम
1. भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् तथा कोल इंडिया लिमिटेड के मध्य कोल इंडिया लिमिटेड के कार्याें पर दीर्घ कालीन आधार पर तृतीय पक्ष अनुश्रवण कार्याें हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए। परामर्श कार्य निम्न कार्यों सम्मिलित हैंः
i- कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा वित्त पोषित इसकी सहायक कम्पनियों द्वारा संचालित कोयला खदानों का पर्यावरणीय लेखा-परीक्षा।
ii- सेन्ट्रल माईन प्लानिंग खण्ड डिजाइन इन्सटीट्यूट, रांची द्वारा वित्त पोषित योजना के अंतर्गत सिंगरौली कोलफील्ड क्षेत्र के मार्की बार्का पूर्व ब्लाॅक (1000 हेक्टेयर) जिला सिंगरौली, मध्य प्रदेश के अंतर्गत स्थलीय वनस्पतियों, जीवों और जलीय जीवन पर पूर्व व अग्रेतर अन्वेषी ड्रिलिंग का प्रभाव आकलन।
iii- सेन्ट्रल माईन प्लानिंग खण्ड डिजाइन इन्सटीट्यूट, रांची द्वारा वित्त पोषित योजना के अंतर्गत सिंगरौली कोलफील्ड क्षेत्र के मार्की बार्का पश्चिम ब्लाक (500 हेक्टेयर) जिला सिंगरौली, मध्य प्रदेश के अंतर्गत स्थलीय वनस्पतियों, जीवों और जलीय जीवन पर पूर्व व अग्रेतर अन्वेषी ड्रिलिंग का प्रभाव आकलन।
2. सात अलग-अलग राज्यों में 10 मिलियन वृक्षों के त्वरित वनीकरण कार्यक्रम के अनुश्रवण हेतु भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् और नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन के मध्य समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए।
i- एन.टी.पी.सी. पौधरोपडों की हरित परिस्थितियों का अनुश्रवणः देश के सात राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलगांना और बिहार में एन.टी.पी.सी. द्वारा वित्तीय सहायता से संबंधित राज्य वन विभागों ने 5000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में देशज वृक्ष प्रजातियों का पौधरोपड़ किया था।