परिचय:
वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान एक राष्ट्रीय संस्थान है जिसकी स्थापना अप्रैल 1988 में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के अधीन हुई थी। यह एक बहु-फलकित अनुसंधान संस्थान है। इसका उद्येश्य पारंपरिक प्रजनन कार्यक्रमों एवं जैव-प्रौद्योगिकी के हस्तक्षेप द्वारा वृक्ष प्रजातियों की उत्पादकता में सुधार के लिये अनुसंधान करना है। आनुवंशिकी एवं जैव- प्रौद्योगिकी प्रभाग के द्वारा वन संवर्धन, बीज प्रौद्योगिकी, सुरक्षा(कीट-विज्ञान एवं रोग विज्ञान) तथा जैव विविधता प्रभागों की सहायता से मुख्य अनुसंधान किया जाता है।
अधिदेश:
वनीकरण और सामाजिक वानिकी में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रजातियों को पहचानना तथा विकसित करना है। यह क्षेत्र में उपयुक्त होने वाले पारिस्थितिक संबंधी उत्पादन में प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर सुधार के राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान देगा।
अनुसंधान क्षेत्र:
निम्नलिखित क्षेत्रों में संस्थान सक्रिय अनुसंधान में सम्मिलित है:-
- आनुवंशिक सुधार
- रोपण भंडार सुधार
- जिनोमिक्स
- क्लोनीय प्रसारण
- उत्पादकता तथा पोषक चक्र
- एकीकृत रोग तथा कीट प्रबंधन
- बीज निर्वाह तथा बीज परीक्षण
- जैव-पूर्वेक्षण
- पारिपुनरुद्धार
- संरक्षण
भौगोलिक क्षेत्राधिकार:
निम्नलिखित राज्य और संघ शासित प्रदेश संस्थान के क्षेत्राधिकार क्षेत्र है:-
तमिलनाडु
केरल
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह
लक्ष्द्वीप समूह
पुदुचेरी
महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ: (Click on link to view detail)
1 - Research अनुसंधान:
अ) व.आ.वृ.प्र.सं द्वारा रिलीज़ किये गये तेज वृद्धि के क्लोन का लाइसेंसिंग: व.आ.वृ.प्र.सं ने अभी तक केश्यूरिना और यूकलिप्टस के 30 क्लोन को रिलीज़ किया हैं जिसमें उच्चतम गुण जैसे तेज उपज, हवा - कठोरता, सूखा सहनशीलता, कीट सहिष्णुता और ऊसर मिट्टी में बढ़ने की क्षमता आदि शामिल है। पौधा किस्म के संरक्षण और किसानों के अधिकार अधिनियम, 2001, भारत सरकार के संरक्षण के प्रावधानों के तहत पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवीएफआरए) के साथ पंजीकरण करके इन क्लोनों की बौद्धिक संपदा अधिकार को सुरक्षित रखा गया है। रोपण स्थल और खेती के प्रथाओं के आधार पर नए क्लोन वर्तमान में लगाए गए बेंचमार्क क्लोन की तुलना में 25 से 40% अधिक लुगदी उत्पादन करने में सक्षम हैं। व्यापक अनुकूलता, तेज वृद्धि, कीट सहिष्णुता और क्लोन की समान वृद्धि से किसानों को भूमि और फसल की अधिकतम क्षमता का एहसास करने में मदद मिलती है। काष्ठ उत्पादन में वृद्धि के माध्यम से, यह क्लोन कागज उद्योगों के लिए लुगदी कच्ची सामग्री की उपलब्धता में भी सुधार करते हैं, जो वर्तमान में रेशा और कच्ची सामग्री की कमी का तीव्र रूप से सामना कर रहे हैं।
अ) वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान ने आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण लक्षणों जैसे लुगदी उपज, लिग्निन / सेलूलोज़ अनुपात और साहसी रूटिंग क्षमता वाली संकर शक्ति का उपयोग करने के लिए यूकलिप्टस के अंतर-विशिष्ट संकर विकसित किए हैं। इसे किसानों और कागज उद्योगों तक पहुँचाने के लिए क्षेत्र मूल्यांकन प्रगति पर हैं।
अ) वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान ने अत्याधुनिक क्लोनल प्रचार सुविधाओं की स्थापना की है और रिलीज़ किये गये नये क्लोन के पौधों को बड़ी संख्या में उत्पादन कर किसानों को दिया जा रहा है। विशेष रूप से यूकलिप्टस केमल्डुलेंसिस क्लोन, आईएफजीटीबी-ईसी 4 और केश्यूरिना जुन्घुनियाना क्लोन, आईएफजीटीबी-सी/जे 9 किसानों और कागज उद्योगों के बीच लोकप्रिय हुए हैं और इन क्लोनों के इस्तेमाल से खेती का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। इन क्लोनों से किसानों को कम से कम 30% अधिक काष्ठ उत्पादन मिलता है जो धीरे-धीरे वर्तमान में इस्तेमाल किये जाने वाले वाणिज्यिक क्लोन को प्रतिस्थापित कर रहे है।
अ) बीज निर्वाह तकनीक: 15 शोला प्रजातियों के लिए बीज निर्वाह तकनीक को विकसित और मानकीकृत किया गया और वनपालों के उपयोग के लिये तमिल में एक फील्ड गाइड को तैयार किया गया। शोला प्रजातियों के प्रदर्शन पर जैव संरोपण के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए 2 शोला बहाली परीक्षणों की स्थापना – कोतगिरी (1 हेक्टेयर) और ग्लेनमोर्गन (1 हेक्टेयर) में की गई।
अ) जैव पूर्वेक्षण:
जैव कीटनाशक – विल्वेगम (बेल, एगल मार्मेलोस बीज तेल आधारित सूत्रीकरण) वर्ष 2011 में विकसित कर रिलीज़ किये गये।
हाई-एक्ट जैव कीटनाशक - सागौन के डिफॉलीएटर हिब्लिया प्यूरिया, केश्यूरिना छाल खाने के कैटरपिलर इंड्रबेल्ला क्वाड्रिनोटाटा और एइलंथस डिफॉलीएटर एलिग्मा नरसिस के खिलाफ हिड्नोकार्पस पेंटेंड्रा बीज तेल आधारित पूर्व सूत्रीकरण जैव कीटनाशक को वर्ष 2012 में विकसित कर रिलीज़ किये गये।
ट्री-पॉल - हिड्नोकार्पस पेंटेंड्रा से विकसित बीज तेल आधारित सूत्रीकरण का एक नया जैव कीटनाशक उत्पाद वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान, कोयम्बत्तूर द्वारा फरवरी 2013 में आयोजित “किसान मेले” में रिलीज़ किया गया।
तेज उपज से बढ़ते वृक्षों की प्रजातियाँ जैसे केश्यूरिना, मिलीना, एइलंथस, मीलिया और यूकलिप्टस के विकास में सुधार के लिए पारिस्थितिकीय जैविक बयोबूस्टर को विकसित किया गया और वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान में फरवरी, 2013 के दौरान आयोजित वृक्ष उत्पादक मेले में प्रस्तावित किया गया।
अ) अकेशिया निलोटिका प्रजाति, इंडिका, अल्बीजिया लेब्बेक, केश्यूरिना, टेक्टोना ग्रेंडिस, टेमरिंडस इंडिका, अजाडिरेक्टा इंडिका, फिलाइंथस एम्ब्लिका, पोन्गामिया पिन्नाटा, सिजीजियम कुमिनी, आइलेंथस एक्सेल्सा और एगल मार्मेलोस के कीट समस्याओं का अध्ययन किया गया और प्रमुख कीटों के प्रबंधन के एकीकृत तरीके तैयार किए गए। कहे गये वृक्ष प्रजातियों की प्रमुख कीटों की अवधि और स्तर को दर्शाते हुए एक कीट कैलेंडर विकसित किया गया है।
अ) लेटराइट मिट्टी में आम तौर पर फायदेमंद सूक्ष्म जीवों की कमी होती है और वी.ए.एम और एज़ोस्पिरिलम, फॉस्फोबैक्टेरियम के साथ संरोपित वृक्ष प्रजातियों का उपयोग कर नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम को केरल के वन क्षेत्रों में सफलतापूर्वक पुनः दावा किया गया।
2 - Extension विस्तार:
अ) वायु गति रोतक कृषि वानिकी प्रणाली हेतु केश्यूरिना जुन्गुनियाना के 5 बेहतर क्लोनों को विकसित किया गया और वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान की क्षेत्रीय विविधता परीक्षण समिति की सिफारिश के आधार पर मार्च 2014 के दौरान भा.वा.अ.शि.प. के वेरैटी रिलीज़ कमिटी ने उसे रिलीज़ करने का अनुमोदन दिया। रिलीज़ किये गये क्लोनों को बडे पैमाने पर गुणा किया गया और वायु गति रोतक कृषि वानिकी प्रणाली के परीक्षण स्थल की स्थापना करने में उनका उपयोग किया गया साथ-साथ जरूरतमंद किसानों को भी दिया गया। आज तक इन पाँच वायु गति रोतक क्लोनों के 25000 से अधिक गुणवत्ता पौधों को किसानों/उपभोक्ताओं को आपूर्ति किये गये। वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान के वायु गति रोतक क्लोन के तहत लगभग 50 हेक्टेयर क्षेत्रफल है।
अ) औद्योगिक सहयोग को मजबूत किया गया और भारतीय कागज उत्पादक संस्थान एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित रेड सेंडर्स के वाणिज्यिक प्रसार एवं लुप्तप्राय प्रजातियों के विकास के लिये बीज बागान विकास नामक परियोजना को लागू किया गया।
अ) व.आ.वृ.प्र.सं- वन विज्ञान केंद्र - कृषि विज्ञान केंद्र बैठक: व.आ.वृ.प्र.सं ने 16 दिसम्बर 2016 को कृषि विज्ञान केंद्र, त्रिशूर, केरल में कृषि विज्ञान केंद्र, वन विज्ञान केंद्र और वानिकी कॉलेज के साथ बैठक आयोजन किया। कार्यक्रम समन्वयक कृषि विज्ञान केंद्र डॉ.ए.प्रेमा, डीएफओ सामाजिक वानिकी, श्री.ए.जयमाधवन, डॉ.टी.के कुन्हामू, प्रोफेसर और प्रधान, वन संवर्धन और कृषि वानिकी, सीओएफ ने बैठक में भाग लिया। कार्यवाही के दौरान निदेशक, व.आ.वृ.प्र.सं के नेतृत्व में 7 वैज्ञानिकों के टीम के साथ श्री आर.एस.प्रशांत, भा.व.से ने विचार विमर्श किया।
अ) किसानों के लिए वृक्ष प्रजातियों की खेती और प्रबंधन पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशालाएं कोयंबत्तूर, त्रिची, तिंडीवनम और किल्लीकुलम में आयोजित की गई।
अ) आजीविका समर्थन के वैकल्पिक स्रोत के रूप में, प्रौद्योगिकी और बायोबूस्टर के विकास पर प्रशिक्षण आयोजित किये गये और उन तकनीकों को (मिट्टी के बर्तन मिश्रण / विकास प्रमोटर के लिए वैकल्पिक) कोयंबत्तूर, तमिलनाडु के वन सीमांत गांवों के इरुला जनजातियों को सौंपा गया।
अ) वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान, कोयम्बत्तूर में 21 मार्च 2016 को वन आनुवंशिक संसाधनों और वृक्ष सुधार पर पर्यावरणीय सूचना प्रणाली केंद्र(एनविस) ने अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस आयोजन किया। श्री.आर.एस प्रशांत, निदेशक वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान ने समूह समन्वयक अनुसंधान और प्रभागों के सभी प्रमुखों की उपस्थिति में वर्ष 2016, 'वन और जल' के विषय पर जागरूकता पोस्टर रिलीज़ किया। निदेशक ने मौजूद वनों की रक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी पर बल दिया जो स्वच्छ और साफ पानी का प्रमुख स्रोत है। समारोह गणमान्य व्यक्तियों द्वारा पौधे लगाने के साथ समाप्त हुआ।
अ) विज्ञान जलवायु कार्य विशेष एक्सप्रेस रेलगाडी (एसईसीएएस) को 22.03.2016 और 23.03.2016 को केरल के ओलावाक्कोड में पालक्काड रेलवे स्टेशन पर तैनात किया गया था। दो दिवसीय प्रदर्शनी के दौरान, वन आनुवंशिक संसाधन और वृक्ष सुधार पर पर्यावरणीय सूचना प्रणाली केंद्र के टीम के सदस्यों ने भाग लिया और कार्यक्रम आयोजकों के साथ जुडकर स्कूल, कालेज के विद्यार्थी एवं आम जनों में जागरूकता पैदा की। प्लेटाफार्म में सूचना पट्ट लगाये गये जिसमें प्रमुख घटकों को दर्शाये गये।
3 - Educationशिक्षा:
यह संस्थान वन अनुसंधान संस्थान विश्वविद्यालय के नोडल केंद्रों में से एक है और अब तक 58 पीएचडी छात्रों ने सफलतापूर्वक पीएचडी की डिग्री पूरी की है एवं छ: छात्र पीएचडी कर रहे है।
भारतियार विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर द्वारा वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान को वनस्पति विज्ञान, संयंत्र जैव-प्रौद्योगिकी, सूक्ष्म जीवविज्ञान, प्राणीशास्त्र और जीवन विज्ञान में पीएचडी कार्यक्रम करने हेतु मान्यता प्राप्त हुई है। वर्तमान में 27 छात्र पीएचडी कर रहे है और 4 छात्रों को पीएचडी डिग्री प्राप्त की है।
पूर्व स्नातक इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी और स्नातकोत्तर जीवन विज्ञान के छात्रों को वानिकी और संबद्ध विज्ञान में अनुसंधान करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु संस्थान ने पिछले तीन वर्षों के दौरान विद्यार्थी अनुसंधान कार्यक्रम की शुरुआत की है जिसमें लगभग 80 छात्रों ने अपने शोध प्रबंध कार्य को पूरा कर लिया है।
4 - Othersअन्य:
विभिन्न उपभोक्ताओं को केश्यूरिना, यूकलिप्टस, टेक्टोना ग्रेंडिस, मिलीना अर्बोरिया, मीलिया डूबिया, अजाडिरेक्टा इंडिका, सेपिंडस इमर्जिनेटस, सन्टलुम अल्बम और पोन्गामिया पिन्नाटा (35.495 किलोग्राम) की आपूर्ति की गई और संस्थान को 3 लाख रूपये का राजस्व प्रदान किया गया है।
एन.आर.डी.एम.एस-डी.एस.टी परियोजना “कोयम्बत्तूर, तमिलनाडु के वन सीमान्त गावों में इरुला जनजातियों को बायोबूस्टर पर उत्पादों / प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण: आजीविका समर्थन का एक वैकल्पिक स्रोत" (एनआरडीएमएस-डीएसटी, नई दिल्ली), के तहत कोयम्बत्तूर जिले में पालमलई, परलीयार और पिल्लूर वन सीमान्त गावों का चयन किया गया और वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान द्वारा विकसित ट्री रिच बयोबूस्टर नामक उत्पाद और वन्य और कृषि में इसकी उपयोगिता के बारे में उन्हें समझाया गया। इस उत्पाद को आदिवासी समूह को आजीविका सुधार के लिए सौंपा गया।
सीधे उपभोक्ता तक योजना के तहत विभिन्न हितधारकों जैसे वन विभागों, कागज उद्योगों, यूकलिप्टस वृक्षारोपण को बढाने वाले किसानों की आपूर्ति के लिये यूकलिप्टस पौधशाला और वृक्षारोपण में यूकेलिप्टस पित्त ततैया नियंत्रण के लिए परिवर्तनशील पौधे आधारित कीट जाल (यूगललर) को तैयार किया गया। पित्त अतिसंवेदनशील है लेकिन अब पौधशाला, बागानों, खेत और कृषि वानिकी परीक्षणों में इस जाल को विकसित कर उत्पाद क्लोन को वापस लाने का कार्य किया है।
वृक्ष पौधशाला में गुणवत्ता पौधों के उत्पादन के लिए वी.ए.एम बायो-उर्वरक (व.आ.वृ.प्र.सं वृक्ष विकास बूस्टर) नामक उत्पाद को बड़े पैमाने पर उत्पादित किया गया था और वर्ष के दौरान विभिन्न अवसरों पर सभी उपभोक्ताओं (किसान, वृक्ष उत्पादक, कॉलेज शिक्षक, छात्र, एनजीओ, एसएफडी, आदि) को उपलब्ध कराया गया।
कम लागत वाली डीएनए अलगाव किट का विकास (भा.वा.अ.शि.प के सीधे उपभोक्ता तक योजना): कम लागत वाली स्पिन कॉलम आधारित डीएनए अलगाव किट विकसित किया गया और वृक्ष एवं कृषि प्रजातियों में उसे मान्य किया गया। तीसरे पक्ष की वैधता भी आयोजित की गई और डीएनए क्यूसी रिपोर्ट तैयार किया गया। भविष्य लाइसेंसिंग हेतु किट का परीक्षण करने के लिए बायोज़ोन रिसर्च टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के साथ एम.टी.ए पर हस्ताक्षर किया गया।
केश्यूरिना यील्ड केल्कुलेटिंग युटिलिटी साफ्टवेयर: संस्थान ने केश्यूरिना के वृक्षारोपण में उपज मूल्यांकन के लिए एक किसान अनुकूलित सॉफ्टवेयर को विकसित किया।
“भारत के वृक्ष कीट” पर एक मुफ्त मोबाइल एप को उन्मुक्त किया गया जिसमें कीटों की सूचना, उनके विवरण, क्षति के कारण एवं लक्षण और भारत की 25 महत्वपूर्ण वृक्ष प्रजातियों की प्रबंधन रणनीतियां शामिल हैं।
सूक्ष्म प्रसार के माध्यम से सागौन के गुणावत्ता पौधों को बडे पैमाने पर गुणा किया गया। इन गुणावत्ता पौधों का इस्तेमाल कर त्रिची में सागौन का प्रदर्शन परीक्षण किया गया है। इन गुणावत्ता पौधों को किसानों को दिया गया और 3 लाख के राजस्व प्राप्त की गई।
वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान , कोयम्बत्तूर में 25.11.2016 को शहरी वानिकी पर एक प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की गई। लगभग 100 प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण में भाग लिया। नेशनल ग्रीन कॉर्प्स के शिक्षक / समन्वयक, विद्यालय के इको-क्लब, वन विभाग के कर्मचारियों, गैर सरकार संगठन और आवासीय संघ आदि इसके प्रतिभागी थे।
वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान, कोयम्बत्तूर में 9-10 फरवरो 2017 को “भारत एवं देश के महत्वपूर्ण इमारती लकडी/शहतीर घाटे के प्रति समाधान की मांग” पर राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई।
डॉ.एस केदारनाथ द्वारा भारत में वन आनुवंशिक और वृक्ष सुधार अनुसंधान में किए गए योगदानों की याद में डॉ.एस केदारनाथ मेमोरियल लेक्चर (के.एम.एल-2016) 23 दिसंबर 2016 को आयोजित किया गया। डॉ. एस.केदारनाथ मेमोरियल लेक्चर (केएमएल-2017) का 5 वां संस्करण 28 जुलाई 2017 को वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान, कोयंबत्तूर में आयोजित किया गया। डॉ.अशोक कुमार भटनागर, पूर्व प्रमुख और वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय ने वन प्रजातियों के प्रजनन स्वास्थ्य और जैव विविधता को प्रभावित करने वाले वन प्रदूषण और बीज संबंधी पारस्परिक संबंधों पर व्याख्यान दिया।
Ongoing Projects चल रही परियोजनाएँ
Completed Projects पूर्ण हुई परियोजनाएँ
अधिक जानकारी के लिये http://ifgtb.icfre.gov.in/ देखें