इतिहास
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् की यात्रा की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के अंत भारत में वैज्ञानिक वानिकी के आगमन और 1878 में देहरादून में वन विद्यालय की स्थापना के साथ हुई थी। तदनंतर में 5 जून 1906 को देश में वानिकी अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई। 1986 में देश के वानिकी अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार आवश्यकताओं की देखभाल के लिए एक छत्र संगठन के रूप में भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद् या भा.वा.अ.शि.प. का गठन किया गया। अंततः 1 जून 1991 को, भा.वा.अ.शि.प. को तत्कालीन पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त परिषद् घोषित किया गया और सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया।
वर्तमान में, देहरादून में अपने मुख्यालय के साथ भा.वा.अ.शि.प., राष्ट्रीय वानिकी अनुसंधान प्रणाली में एक सर्वोच्च निकाय है जो आवश्यकता आधारित वानिकी अनुसंधान विस्तार का दायित्व लेता है और बढ़ावा देता है।
परिषद् की देश के विभिन्न जैव भौगोलिक क्षेत्रों में 9 क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थानों और 5 केंद्रों के साथ एक अखिल भारतीय उपस्थिति है। प्रत्येक संस्थान का अपना खुद का एक इतिहास है और भा.वा.अ.शि.प. की छत्र तले अपने राज्यों के क्षेत्राधिकार में वे वानिकी क्षेत्र में अनुसंधान, विस्तार और शिक्षा का निर्देशन और प्रबंधन कर रहे हैं। क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान जोधपुर, देहरादून, शिमला, हैदराबाद, कोयम्बटूर, रांची, बेंगलुरु, जोरहाट और जबलपुर में स्थित हैं, तथा केंद्र, अगरतला, आइजॉल, इलाहाबाद, छिंदवाड़ा और विशाखापत्तनम में स्थित हैं।